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 हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का शक्ति प्रदर्शन: शाह के बाद सिरसा में शैलजा की रैली; प्रभारी के सामने भावी सीएम के नारे लगे

 
 हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष का शक्ति प्रदर्शन: शाह के बाद सिरसा में शैलजा की रैली; प्रभारी के सामने भावी सीएम के नारे लगे
 

हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी शैलजा 30 जुलाई को सिरसा में रैली करने जा रही हैं. हरियाणा कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी दीपक बाबरिया के कमान संभालने के बाद शैलजा ने अपने पुराने गढ़ में शक्ति प्रदर्शन किया है। 25 साल बाद कुमारी शैलजा एक बार फिर से सिरसा में अपने शक्ति प्रदर्शन से प्रतिद्वंद्वी हुड्डा खेमे को अपनी ताकत का एहसास कराना चाहती हैं.

क्योंकि पिछले दिनों जब हरियाणा प्रभारी के सामने भूपिंदर हुड्डा के समर्थकों ने उनके भावी सीएम के नारे लगाए तो जवाब में शैलजा समर्थकों ने भी भावी सीएम के नारे लगाए. पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुडा के बेटे दीपेंद्र हुडा ने मई और जून में हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में कई सार्वजनिक बैठकें कीं. चर्चा है कि कुमारी सैलजा फिर से सिरसा को अपना गढ़ बनाना चाहती हैं.

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दूसरी और कुमारी सैलजा ने पिछले दिनों अंबाला में अपने पार्टी वर्करों की आंतरिक मीटिंग लेकर उपचुनाव लड़ने के संकेत दे दिए। इसके लिए पार्टी नेता बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की सूचियां भी तैयार करने में जुटे हैं। सैलजा का स्पष्ट संदेश है कि आगे बढ़ने के लिए यह उपचुनाव जीतना जरूरी है।

शाह की रैली के बाद सैलजा की रैली


हरियाणा में भाजपा ने लोकसभा सीटों पर चुनावी श्री गणेश सिरसा में 18 जून को शाह की रैली से किया। इसके बाद अब सिरसा में यह दूसरी बड़ी रैली कांग्रेस की होने जा रही है। कुमारी सैलजा 5 जुलाई को सिरसा का दौरा भी करने जा रही हैं।

भारतीय यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी सदस्य विनीत कंबोज का कहना है कि कुमारी सैलजा एक राष्ट्रीय नेता हैं। 30 जुलाई को लेकर रैली का आयोजन किया जा रहा है। यह रैली रिकॉर्डतोड़ होगी।

जानिए पूर्व केंद्रीय मंत्री के सिरसा में दिलचस्पी के कारण


हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटों में से अंबाला और सिरसा ही दो संसदीय सीट आरक्षित हैं। अंबाला में सांसद रतन लाल कटारिया की मौत के बाद उपचुनाव या आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी उनकी पत्नी बंतो कटारिया को चुनाव में उतार सकती है। ताकि सहानुभूति वोट से भाजपा वह सीट जीत सके। इसलिए कुमारी सैलजा की सिरसा संसदीय सीट में रुचि बढ़ना है।

अंबाला में हुई थी बगावत


पिछले विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण को लेकर अंबाला कांग्रेस में काफी विद्रोह हुआ था। टिकट वितरण को लेकर अंबाला के कांग्रेस नेता निर्मल सिंह, चित्रा सरवारा औक हिम्मत सिंह ने विद्रोह कर दिया था। निर्मल सिंह और चित्रा सरवारा दोनों निर्दलीय ही चुनाव लड़े थे। जबकि हिम्मत सिंह सैलजा का खास था, उसने भी टिकट न मिलने पर कुमारी सैलजा के खिलाफ बगावत कर दी थी।

कुमारी सैलजा के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए इन लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन उनके प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ते ही हुड्‌डा गुट ने अंबाला में सभी सैलजा विरोधी नेताओं को पार्टी में शामिल करके अपना धड़ा मजबूत कर लिया।

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सिरसा में कोई कदवार नेता नहीं


सिरसा जिले में कोई भी कांग्रेस का प्रदेश स्तरीय नेता नहीं है। जिले से कांग्रेस के दो विधायक हैं, लेकिन वे अपने विधानसभा हलके तक सीमित हैं। अशोक तंवर और चौधरी रणजीत सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद सिरसा में कोई कांग्रेस का बड़ा नेता नहीं उभरा। ऐसे में कुमारी सैलजा के चुनावी राह में कोई बड़ा रोड़ा भी नहीं है।

सैलजा अपने समर्थकों को विधानसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाना चाहेगी। सिरसा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जिला है। पूर्व सीएम ओपी चौटाला और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला का यह गृह जिला है।

तीन लोकसभा की 27 सीटें पर पकड़


कुमारी सैलजा का गृह जिला हिसार है। हिसार में कुलदीप बिश्नोई के पार्टी छोड़ने के बाद कुमारी सैलजा के कद के बराबर कोई नेता नहीं है। अंबाला लोकसभा में आने वाले तीन जिलों अंबाला, पंचकूला, यमुनानगर में कुमारी सैलजा 9 विधानसभा हलकों में अपनी पैठ पहले ही बना चुकी है।

अब सैलजा सिरसा लोकसभा क्षेत्र की 9 सीटों पर अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है। ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में वह अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिला सकें। ये तीन लोकसभा क्षेत्र 27 विधानसभा सीटों को कवर करते हैं।

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सिरसा से चार बार पिता और दो बार खुद रह चुकी सांसद


कुमारी सैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह सिरसा संसदीय सीट से चार बार सांसद रह चुके हैं। कुमारी सैलजा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत सिरसा से 1991 के लोकसभा चुनाव जीत कर की थी। इसके बाद 1996 का लोकसभा चुनाव जीता। 1998 का लोकसभा चुनाव इनेलो के पूर्व सांसद डॉ सुशील इंदौरा से हार गई थी। इसके बाद 2004 और 2009 का चुनाव अंबाला लोकसभा से लड़ा और जीता।

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