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Double Engine Train Driver:दो इंजन वाली ट्रेनों में क्या दोनों डिब्बों में बैठते हैं ड्राइवर? हैरान कर देगा जवाब

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60-70 साल पहले से यूज होता आया है डबल इंजन  जब डीजल इंजन वाली ट्रेनें आईं, तब भी डबल इंजन का उपयोग किया जाता रहा. जैसे ही ट्रेनें और लंबी हुई तो डीजल इंजन में भी डबल इंजन का यूज किया जाने लगा. बड़ी ट्रेन में वजन भी बहुत ज्यादा होता है जिसके कारण एक इंजन से ट्रेन को संचालित करना मुश्किल होता है. स्टीम इंजन में 1250 हॉर्स पॉवर का यूज होता था, लेकिन बाद डीजल इंजन में 2000 हॉर्स पॉवर का इस्तेमाल किया जाने लगा. आज के समय में इलेक्ट्रिक इंजनों की क्षमता बहुत बढ़ गई है और यह 5000 से 12000 हार्सपावर तक की होती है. ऐसे में डबल इंजन लगाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि एक इंजन ही एक बड़ी मालगाड़ी को आसानी से ढुला सकता है.  अब तो आ गई है एमयू वाली तकनीक  अभी भी कुछ ऐसे रेलवे सेक्शन हैं जहां घाटी में स्थिति के कारण रेलगाड़ियों को ढुलाने में कठिनाई आ सकती है. ऐसी स्थिति में डबल इंजन लगाए जाते हैं ताकि ढुलाने की क्षमता बढ़ सके और रेलगाड़ियां सुरक्षित रूप से अपनी गति बनाए रख सकें. अब तो लोकोमोटिव में भी इलेक्ट्रॉनिक इक्विप्मेंट जोड़े जाने लगे हैं. इससे मल्टीपल यूनिट की शुरुआत हुई. एमयू की वजह से अब किसी भी ट्रेन में डबल, ट्रिपल यहां तक कि 4 इंजन तक को भी जोड़कर ट्रेन की ढुलाई की जाने लगी है. चार इंजन वाले ट्रेन को पायथन ट्रेन कहा जाता है.
 

Indian Railways Intersting Facts: जब हम डबल इंजन वाली ट्रेन की बात करते हैं, तो वह एक विशेष प्रकार की रेल गाड़ी होती है जिसमें डबल इंजन यानी दो लोकोमोटिव इंजन लगे होते हैं. एक लोकोमोटिव अग्रभाग में और दूसरी उसके पिछले भाग में लगी होती है. इसका उद्देश्य होता है जब बहुत लंबी और भारी गाड़ियां होती हैं, तो दो इंजन इसे सहजता से खींजी जा सकती है. अब आते हैं आपके सवाल पर - डबल इंजन वाली ट्रेन में दोनों इंजनों में ड्राइवर या लोको पायलट नहीं बैठते हैं. बल्कि, सिर्फ एक लोको पायलट और एक असिस्टेंट लोको पायलट होते हैं जो पहली लोकोमोटिव के साथ अग्रभाग में बैठते हैं और दूसरे इंजन को कंट्रोल करते हैं.

क्या आप जानते हैं डबल इंजन का यूज?

लोको पायलट दोनों इंजनों को कंट्रोल करता है और सुनिश्चित करता है कि वे समय पर संगत रूप से काम कर रहे होते हैं. डबल इंजन वाली ट्रेन के पीछे लगे इंजन को आमतौर पर स्विच इंजन (Switch Engine) भी कहते हैं. जब भारत में ट्रेनों का संचालन स्टीम इंजन से होता था, उस समय ट्रेनें बहुत छोटी होती थीं. सन 1950-60 की दशक में अधिकतर ट्रेन पांच या छह डिब्बे के होते थे जिसके कारण वे बहुत हल्की होती थीं. लेकिन, ऐसी ट्रेनें भी थीं जिनमें नौ या इससे भी अधिक डिब्बे हुआ करते थे. इन ट्रेनों को संचालित करने के लिए एक स्टीम इंजन काफी नहीं था. इसलिए, इन ट्रेनों में दो स्टीम इंजन जोड़े जाते थे.

60-70 साल पहले से यूज होता आया है डबल इंजन

जब डीजल इंजन वाली ट्रेनें आईं, तब भी डबल इंजन का उपयोग किया जाता रहा. जैसे ही ट्रेनें और लंबी हुई तो डीजल इंजन में भी डबल इंजन का यूज किया जाने लगा. बड़ी ट्रेन में वजन भी बहुत ज्यादा होता है जिसके कारण एक इंजन से ट्रेन को संचालित करना मुश्किल होता है. स्टीम इंजन में 1250 हॉर्स पॉवर का यूज होता था, लेकिन बाद डीजल इंजन में 2000 हॉर्स पॉवर का इस्तेमाल किया जाने लगा. आज के समय में इलेक्ट्रिक इंजनों की क्षमता बहुत बढ़ गई है और यह 5000 से 12000 हार्सपावर तक की होती है. ऐसे में डबल इंजन लगाने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि एक इंजन ही एक बड़ी मालगाड़ी को आसानी से ढुला सकता है.

अब तो आ गई है एमयू वाली तकनीक

अभी भी कुछ ऐसे रेलवे सेक्शन हैं जहां घाटी में स्थिति के कारण रेलगाड़ियों को ढुलाने में कठिनाई आ सकती है. ऐसी स्थिति में डबल इंजन लगाए जाते हैं ताकि ढुलाने की क्षमता बढ़ सके और रेलगाड़ियां सुरक्षित रूप से अपनी गति बनाए रख सकें. अब तो लोकोमोटिव में भी इलेक्ट्रॉनिक इक्विप्मेंट जोड़े जाने लगे हैं. इससे मल्टीपल यूनिट की शुरुआत हुई. एमयू की वजह से अब किसी भी ट्रेन में डबल, ट्रिपल यहां तक कि 4 इंजन तक को भी जोड़कर ट्रेन की ढुलाई की जाने लगी है. चार इंजन वाले ट्रेन को पायथन ट्रेन कहा जाता है. 

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