बारिश से कपास में कीट व रोग लगने की आशंका से किसान इन दवाओं का छिड़काव कर फसल बचाएं
![कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर करें छिड़काव](https://publicharyananews.com/static/c1e/client/99413/uploaded/99932e2d7f36a3881e839d5f2e1164aa.jpg?width=968&height=545&resizemode=4)
रेवाड़ी | हरियाणा के रेवाड़ी जिले में पिछले तीन दिनों से लगातार हो रही भारी बारिश के कारण कपास की फसल पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, खेतों में पैदावार प्रभावित होने की आशंका है। अनुसार, इस बारिश का सीधा प्रभाव 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की खेती पर पड़ेगा।
इस बारिश के कारण, कपास की फसल में सफेद मक्खी (रस चूसक) और हरा तेला कीट तथा जड़ गलन (फंगस) रोग लगने की संभावना है। ये कीट और रोग पेड़ के पत्तों की निचली सतह पर बैठते हैं और पत्ते का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते सिकुड़ने लगते हैं और पेड़ उनके माध्यम से सूर्य की किरणों के संश्लेषण विधि से भोजन बनाने में असमर्थ रहते हैं। इससे पत्ते मुरझा जाते हैं और पेड़ की जड़ें गलने लगती हैं, जिससे पेड़ नष्ट हो सकते हैं या अच्छी पैदावार नहीं दे सकते हैं।
इन कीट व रोगों से बचाव के उपाय
कृषि विशेषज्ञों ने इन कीटों और रोगों से बचाव के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। किसानों को खेतों में समय-समय पर जाकर फसल की देखभाल करनी चाहिए और उचित मात्रा में दवाइयों का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, रासायनिक खादों का प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे फसल को रोगों और कीटों से बचाया जा सकता है। किसानों को कृषि विकास अधिकारी और अन्य कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए ताकि रोग और कीटों के नुकसान से फसल को बचाया जा सके।
फसल में इन दवाईयों का करें छिड़काव
इसके अलावा, कृषि विशेषज्ञों ने दवाइयों के छिड़काव के बारे में भी सलाह दी है। किसान फसलों में सफेद मक्खी और हरा तेला कीटों से बचाव के लिए नीम ऑयल, ईमिडाक्लोरोपिड और मैटासिस्टॉक्स का छिड़काव कर सकता है। इसके लिए, किसानों को प्रति एकड़ खेत में उचित मात्रा में इन दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए। जड़ गलन रोग (फंगस) से बचाव के लिए किसान फसल में मैनकोजेब दवाई का छिड़काव कर सकता है।
कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर करें छिड़काव
इन सभी सलाहों के साथ-साथ, किसानों को कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए और समय-समय पर उनसे संपर्क में रहना चाहिए, ताकि उन्हें नवीनतम सलाह और जानकारी मिल सके और फसल को रोगों और कीटों से बचाने के लिए उचित कदम उठाए जा सकें।